सतपाल धानिया
विकासनगर। बात दीपावली की हो और दीए न जगमगाए ऐसा हो नहीं सकता। मगर आज के आधुनिक दौर में दीपों को बनाने की कला विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई है। मगर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी परंपरागत कला को जीवित रखे हुए हैं।
धर्मावाला में रहने वाले सुखलाल का परिवार भी उनमें से एक है, जो मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने की कला को जिंदा रखे हुए हैं। जो इन दिनों दीपावली के लिए दीये बनाने में जुटे हुए हैं। बता दें कि सुखलाल अपने पुस्तैनी काम को पिछले पचास सालों से कर रहे हैं, जिसमें अब उनके दोनों बेटे उनका हाथ बंटा रहे हैं। सीमित संसाधनों के जरिए अपनी आजीविका चला रहे इस परिवार का कहना है कि वह लोग अपनी परंपरागत कला को जीवित रखे हुए हैं। जिनका कहना है कि उन्हें आज तक सरकार की ओर से कोई सहयोग नहीं मिला है, जिस वजह उन्हें अपने सीमित संसाधनों के जरिए ही अपनी आजीविका चलानी पड़ रही है। कहा कि मौजूदा दौर में मिट्टी की उपलब्धता न होने के कारण उन्हें अपनी कला को आगे बढ़ाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। कहा कि अगर आगे भी यही हाल रहा तो उन्हें यह काम जारी रखना मुश्किल पड़ जाएगा। बताया कि इसी वजह से काफी लोग यह काम छोड़ चुके हैं।
ऐसे में सरकारों को चाहिए की खोखले दावे व वायदे करने की जगह ऐसे लोगों को चिह्नित करके उन्हें प्रोत्साहित करें और उन्हें आर्थिक सहयोग देकर ऐसे हस्त शिल्पकारों को आगे बढ़ने में मदद करें।
Good धानिया ji
बहुत खूब